शुक्र +गुरु
ज्योतिष के क्षेत्र से जुड़े या ज्योतिष सिखने वाले व्यक्तियो से शुक्र के कारकतत्व के विषय में यदि प्रश्न किया जाए तो उनमे से अधिकांश का जबाब केवल यही होगा.... भोग,सुन्दरता,वाहन,धन,भवन,अभिनय,गायन,प्रेम,कामवासना,आदि।
आधुनिक ज्योतिष मत में शुक्र को केवल एक भोग प्रधान ग्रह माना जाने लगा है।
यह सत्य भी है..की समस्त भोग विलास के प्रसाधनो का कारक शुक्र ही है।
किन्तु शायद आधुनिक ज्योतिषी या ज्योतिष ज्ञान के पिपासु यह भूल रहे है...जहा बृहस्पति देवताओ के गुरु थे....तो शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु थे,।
शुक्राचार्य को ....''''सर्व शास्त्र प्रवक्तारं'''कहा गया है।
शुक्राचार्य तंत्र-मंत्र,धर्म शास्त्र,वेद,ज्योतिष तथा अनेक मायावी शक्तियो के स्वामी थे।
शुक्राचार्य विधा और ज्ञान में देवगुरु बृहस्पति से बढ़कर थे..
शुक्राचार्य '''मृत संजीवनी विधा'' ''के ज्ञाता थे। वे इस विधा से मरे हुए दैत्यों को जीवित कर देते थे।
इसी मृत संजीवनी विधा को सिखने के लिए देवगुरु बृहस्पति ने अपने पुत्र कच्छ को शुक्राचार्य के पास भेज था।
वामन वेष में आये भगवान को पहचान लिया था.....तथा राजा बलि आगाह कर दिया था....के ये साधारण बालक नही है।यह साक्षात् '''' विष्णु है।
अतः शुक्र प्रधान व्यक्ति कभी किसी से धोका नही खाता है।
शुक्र ज्योतिष तन्त्र-मन्त्र,साधना,,परा शक्ति आदि के क्षेत्र में भी अपार सफलता देते है।
बलि और शुभ होने पर शुक्र व्यक्ति को विद्वता देते है।
''शुक्र'' शरीर में ''वीर्य'' धातु के कारक है...शुक्र ही ''काम'' के कारक है।
शुक्र में जन्म देने की शक्ति है। शुक्र से ही यह संसार है।
जिस व्यक्ति के जन्मांग में शुक्र बलवान होता है वह व्यक्ति सुन्दर आकर्षक ''चेहरे'' स्वामी होता है।....ऐसे व्यक्ति में आकर्षण शक्ति बहुत अधिक होती है...लोग इन्हें देखते ही आकर्षित हो जाते है।
अभिनय , कला जगत में बलवान शुक्र के बिना सफलता की कल्पना की ही नही जा सकती ।
जन्मांक में शुक्र के अशुभ होने पर जातक या जातिका का चरित्र बहुत कम आयु में भ्रष्ट हो जाता है..।अगर इन पर कठोर नियंत्रण ना हो तो
ये गलत मार्ग पर चल पड़ते है। शुक्र के अशुभ होने पर जातक ''' कामवासना'' पर नियंत्रण नही कर पाता है।
इन्हें लोग लाज का भय नही होता है...
कहा भी गया है....
''कामातुराणं न भयं न लज्जा''
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