*ज्योतिष में लग्न बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। लग्न का स्वामी होकर यदि कोई ग्रह अच्छे भाव में जाता है तो जातक को उसका अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। इसलिए यदि लग्न का स्वामी दसवें भाव में हो तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है। यह धन वह अपनी मेहनत से अर्जित करता है।*
*मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है। जब गुरु नवें या ग्यारहवें और सूर्य पांचवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है। बुध, गुरु और सूर्य की यह स्तिथि एक तरह का राजयोग बनाती हैं। इस योग के साथ यदि किसी ज्योतिषाचार्य की सलाह ली जाए तो यह योग बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं।*
जब दूसरे और नवम भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं। इस अवस्था में शनि ग्रह को छोड़कर दूसरे ग्रहों को देखा जाता है। शनि देव यदि दूसरे या नवम के स्वामी हों तो यह योग धनकारी नहीं होता है।
*चंद्रमा और गुरु का संयोग कुंडली में बहुत शुभ और लाभदायक माना गया है। इन दोनों ग्रहों की युती हमेशा धन और सम्मान दिलाती हैं। इसके अलावा जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाएँ तो व्यक्ति को रातों-रात अमीर बना देते हैं।*
*दूसरे भाव का स्वामी यदि 8वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है। यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।*
*सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने। छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवें, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बनाता है।*
*यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुएँ, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।*
*मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवें भाव में और गुरु ग्यारहवें या पांचवें भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।*
*गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है। यह योग एक उम्र के बाद ही धन प्राप्त कराता है। ऐसे योग होने पर जातक को शीघ्र विवाह और संतान उत्पत्ति की सलाह दी जाती है।*
*राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है। बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बनाता है।*
*बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।*
*कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर 3, 6 और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक्र या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।*
*गुरु जब दसवें या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवें भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।*
यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसाय द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।
*समस्या है तो समाधान भी है, सभी कठिनाईयों से लड़कर सफलता पाने की राह भी है। इसके लिए ज्योतिष विज्ञान मार्गदर्शन देती है।*
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ज्योतिषी आचार्य श्वेता ओबेरॉय
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