शाकंभरी नवरात्रि - 3 जनवरी से 10 जनवरी 2020 - तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और महत्व

शाकंभरी नवरात्रि - 3 जनवरी से 10 जनवरी 2020 - तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और महत्व

*हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शाकंभरी नवरात्रि पौष महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमीतिथी को पड़ती है. ये पौष महीने की पूर्णिमा तक मनाई जाती है. गुप्त नवरात्रि की तरह शाकंभरी नवरात्रि का भी बहुत महत्व है. शाकंभरी मां दुर्गा का ही एक स्वरुप है. उनके सिर पर मौजूद मुकुट उनकी महाविद्या को दर्शाता है. उनकी उज्जवल आंखें अपने बच्चों के दुःख का पता लगाने के लिए तत्पर रहती हैं. उनके माथे पर तीन आखें है, जो उनके वास्तविक ज्ञान का प्रतिक है. उनके दाहिने हाथ में कमल का फूल है और बाएं हाथ में एक धनुष और बाण है. अपने नीचले हाथ में जड़ी-बूटियां, फूल, सब्जियां और जड़ों को पकड़े हुए हैं, जिससे पता चलता है कि मां शाकंभरी वनस्पति की देवी हैं.* 

*🌿तंत्र-मंत्र के जानकारों की नजर में इस नवरात्रि को तंत्र-मंत्र की साधना के लिए अतिउपयुक्त माना गया है। इस नवरात्रि का समापन 10 जनवरी, शुक्रवार को पौष शुक्ल पूर्णिमा के दिन होगा। इसी दिन मां शाकंभरी जयंती भी मनाई जाएगी।*

*🌿जिस तरह मां अन्नपूर्णा अन्न की देवी हैं, उसी तरह देवी शाकंभरी सब्जियों और साग से संबंधित दैवीय शक्ति हैं. ‘शाका’का संस्कृत अर्थ है शाकाहारी भोजन और ’अम्बारी’ का अर्थ है पालन करना. मां शाकंभरी देवी दुर्गा के अवतारों में से एक हैं. मां शाकंभरी ने मानव जगत के कल्याण के लिए अवतार लिया.* 

*🌹धार्मिक शास्त्रों के अनुसार गुप्त नवरात्रि की भांति शाकंभरी नवरात्रि का भी बड़ा महत्व है। माता शाकंभरी (शाकम्भरी) देवी दुर्गा के अवतारों में एक हैं। नवरात्रि के इन दिनों में पौराणिक कर्म किए जाते हैं, विशेषकर माता अन्नपूर्णा की साधना की जाती है।🌹*

*🔥🚩तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि के इन दिनों में साधक वनस्पति की देवी मां शाकंभरी की आराधना करेंगे। मां शाकंभरी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाक-सब्जियों, फल-मूल आदि से संसार का भरण-पोषण किया था। इसी कारण माता 'शाकंभरी' नाम से विख्यात हुईं।💥*

*मंत्र-* 

*शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।* 

*मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।*

*🌻अर्थात- देवी शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये पद्मासना हैं अर्थात् कमल पुष्प पर ही विराजती हैं। इनकी एक मुट्‌ठी में कमल का फूल रहता है और दूसरी मुट्‌ठी बाणों से भरी रहती है।*

*💖शाकंभरी माता व्रत कथा:*💖

*पौराणिक कथा अनुसार एक बार पृथ्वी पर गंभीर सूखा पड़ा और लगभग सौ वर्षों तक बारिश का कोई निशान नहीं था. भोजन और पानी की कमी के कारण पृथ्वी के सभी जीव जंतू धीरे-धीरे समाप्त होने लगे. इस हाहाकार से सभी देवता परेशान हो गए, इस दुर्दशा से उबरने के लिए वे सर्वशक्तिमान मां दुर्गा के पास गए. देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर मां दुर्गा शाकंभरी रूप में वहां प्रकट हुईं. हरी पत्तियों, फलों और सब्जियों से लिपटी हुई मां ने धरती के सभी प्राणियों की भूख और प्यास को संतुष्ट करने के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रदान कीं. उनके आशीर्वाद से पृथ्वी पर बारिश हुई और पृथ्वी पर जीवन वापस आ गया.* 

*पुराणों में यह उल्लेख है कि देवी ने यह अवतार तब लिया, जब दानवों के उत्पात से सृष्टि में अकाल पड़ गया। तब देवी शाकंभरी रूप में प्रकट हुईं। इस रूप में उनकी 1,000 आंखें थीं। जब उन्होंने अपने भक्तों का बहुत ही दयनीय रूप देखा तो लगातार 9 दिनों तक वे रोती रहीं। रोते समय उनकी आंखों से जो आंसू निकले उससे अकाल दूर हुआ और चारों ओर हरियाली छा गई। देवी दुर्गा का रूप हैं 'शाकंभरी', जिनकी हजार आंखें थीं इसलिए माता को 'शताक्षी' भी कहते हैं।*

*पौराणिक कथा अनुसार शाकंभरी मां ने 100 वर्षों तक तप किया, महीने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था. पृथ्वी पर जहां पानी भी नहीं था, तप से उन्होंने अपने अंगों पर कई प्रकार की शाक, फल और वनस्पतियां प्रकट की और इससे लोगों का भरण पोषण किया. इसलिए ये शाकंभरी कहलाईं.*

*💥शाकंभरी नवरात्रि तिथि:💥*

*नवरात्रि का अर्थ है नौ रातों का उत्सव. सभी नवरात्रि की तरह ये नवरात्रि को भी नौ दिनों तक मनाई जाती है. हिंदू कैलेंडर के पौष माह में अष्टमी के दिन शाकंभरी नवरात्रि शुरू होती है और शाकंभरी पूर्णिमा के दिन तक चलती है. इस साल शाकंभरी नवरात्रि 3 जनवरी 2020 से शुरू होगी और 10 जनवरी तक चलेगी*.

*🍅शाकंभरी पूर्णिमा शुभ मुहूर्त:*🍅

*पंचांग के अनुसार शाकंभरी पूर्णिमा तिथि 10 जनवरी, 2020 को प्रातः 02:34 बजे शुरू होगी और 11 जनवरी, 2020 को प्रातः 12:50 बजे समाप्त होगी.*

*🙏 हिंदू धर्म में लोग इस दिन को शाकंभरी जयंती के रूप में मनाते हैं। माता शाकंभरी देवी जनकल्याण के लिए पृथ्वी पर आई थी। यह मां प्रकृति स्वरूपा है हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रेणियों की तलहटी में घने जंगलों के बीच मां शाकंभरी का प्राकट्य हुआ था। माँ शाकंभरी की कृपा से भूखे जीवो और सूखी हुई धरती को पुनः नवजीवन मिला।*

*🚩🏠शाकंभरी माता के प्रधान मंदिर*🌿🌹

*माता के देश भर में अनेक मंदिर हैं जहां पर शाकंभरी जन्मोत्सव मनाया जाता है माता का विश्वविख्यात शक्तिपीठ सिद्धपीठ शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात है जो उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर में पड़ता है। माता का एक प्रधान मंदिर राजस्थान के सीकर जिले की अरावली की पहाड़ियों में एक सुंदर घाटी में विराजमान हैं जो सकराय माता के नाम से विख्यात हैं। माता का एक अन्य मंदिर चौहानों की कुलदेवी के रूप में माता शाकंभरी देवी सांभर में नमक की झील के अंदर विराजमान हैं । राजस्थान के नाडोल में मां शाकंभरी आशापुरा देवी के नाम से पूजी जाती हैं । यही मां दक्षिण भारत में बनशंकरी के नाम से जानी जाती हैं। कनकदुर्गा इनका ही एक रूप है। इन सभी जगहों पर शाकंभरी नवरात्रि और पौष पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। मंदिरों में शंख ध्वनि होती है और गर्भगृह को शाक सब्जियों और फलों से सजाया जाता है।*

*🎉🎈छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियाँ पौष माह के पूर्णिमा के दिन छेरता पर्व बडे़ धूमधाम से मनाती हैं। सभी के घरों में नये चावल का चिवड़ा गुड़ तथा तिली के व्‍यंजन बनाकर खाया जाता है। गांव के बच्‍चों की टोलियाँ घर-घर जाकर परम्‍परानुसार प्रचलित बोल छेर छेरता काठी के धान हेर लरिका बोलते हैं और मुट्ठी भर अनाज मांगते हैं। रात्रि में ग्रामीण बालाएं टोली बनाकर घर में जाकर लोकड़ी नामक गीत गाती हैं।* 

*🙏शाकम्भरी देवी की महिमा*🙏

जय जय शाकंभरी माता ब्रह्मा विष्णु शिव दाता हम सब उतारे तेरी आरती री मैया हम सब उतारे तेरी आरती 

संकट मोचनी जय शाकंभरी तेरा नाम सुना है री मैया राजा ऋषियों पर जाता मेधा ऋषि भजे सुमाता हम सब उतारे तेरी आरती

मांग सिंदूर विराजत मैया टीका शुभ सजे है सुंदर रूप भवन में लागे घंटा खूब बजे है री मैया जहां भूमंडल जाता जय जय शाकंभरी माता हम सब उतारे तेरी आरती

क्रोधित होकर चली मात जब शुंभ निशुंभ को मारा को मारा महिषासुर की बांह पकड़ कर धरती पर दे मारा मैया मारकंडे विजय बताता पुष्पा ब्रह्मा बरसाता हम सब उतारे तेरी आरती

चौसठ योगिनी मंगल गाने भैरव नाच दिखावे। भीमा भ्रामरी और शताक्षी तांडव नाच सिखावें री मैया रत्नों का हार मंगाता दुर्गे तेरी भेंट चढ़ाता हम सब उतारे तेरी आरती

कोई भक्त कहीं ब्रह्माणी कोई कहे रुद्राणी तीन लोक से सुना री मैया कहते कमला रानी री मैया मां से बच्चे का नाता ना ही कपूत निभाता हम सब उतारे तेरी आरती

सुंदर चोले भक्त पहनावे गले मे सोरण माला शाकंभरी कोई दुर्गे कहता कोई कहता ज्वाला री मैया दुर्गे में आज मानता तेरा ही पुत्र कहाता हम सब उतारे तेरी आरती

शाकंभरी मैया की आरती जो भी प्रेम से गावें सुख संतति मिलती उसको नाना फल भी पावे री मैया जो जो तेरी सेवा करता लक्ष्मी से पूरा भरता हम सब उतारे तेरी आरती 

*🏆श्री शाकंभर्यष्टकम्*🏆 

शक्तिः शांभवविश्र्वरुपमहिमा मांगल्यमुक्तामणि 

घंटा शुलमसिं लिपिं च दधतीं दक्षैश्र्चतुर्भिः करैः ॥

वामैर्बाहुभिरर्घ्यशेषभरितं पात्रं च शीर्षं तथा 

चक्रं खेटकमंधकारिदयिता त्रैलोक्यमाता शिवा ॥ १ ॥ 

देवी दिव्यसरोजपादयुगुले मंजुक्कणन्नुपुरा

सिंहारुढकलेवरा भगवती व्याघ्रांबरावेष्टिता ॥

वैडूर्यादि महार्घरत्नविलसन्नक्षत्रमालोज्ज्वला

वाग्देवी विषमेक्षणा शशिमुखी त्रैलोक्यमाता शिवा ॥ २ ॥

ब्रह्माणी च कपालिनी सुयुवती राद्री त्रिशूलान्विता 

नाना दैत्यनिबर्हिणी नृशरणा शंखासिखेटायुधा ॥

भेरी शंख मृदंग घोषमुदिता शूलिप्रिया चेश्र्वरी

माणिक्याढ्य किरीटकांतवदना त्रैलोक्यमाता शिवा ॥ ३ ॥

वंदे देवी भवार्तिभंजनकरी भक्तप्रिया मोहिनी 

मायामोहमदान्धकारशमनी मत्प्राणसंजीवनी ॥

यंत्रं मंत्रं जपौ तपो भगवती माता पिता भ्रातृका      

विद्या बुद्धिधृती गतिश्र्च सकल त्रैलोक्यमाता शिवा ॥ ४ ॥ 

श्रीमातस्त्रिपुरे त्वमलणिलया स्वर्गादिलोकांतरे 

पाताले जलवाहिनी त्रिपथगा लोकत्रये शंकरी ॥

त्वं चाराघकभाग्यसंपदविनी श्रीमूर्ध्नि लिंगांकिता 

त्वां वंदे भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ५ ॥

श्रीदुर्गे भगिनीं त्रिलोकजननीं कल्पांतरे डाकिनीं 

वीणापुस्तकधारिणीं गुणमणिं कस्तूरिकालेपनीं ॥

नानारत्नविभूषणां त्रिनयनां दिव्यांबरावेष्टितां 

वंदे त्वां भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ६ ॥

नैर्ऋत्यां दिशि पत्रतीर्थममलम मूर्तित्रये वासिनी 

सांमुख्या च हरिद्रतीर्थमनघं वाप्यां च तैलोदकं ॥

गंगादित्रयसंगमे सकुतुकं पीतोदके पावने 

त्वां वंदे भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ७ ॥

द्वारे तिष्ठति वक्रतुंडगणपः क्षेत्रस्य पालस्ततः 

शक्रेड्या च सरस्वती वहति सा भक्तिप्रिया वाहिनी ॥

मध्ये श्रीतिलकाभिधं तव वनं शाकम्भरी चिन्मयी 

त्वां वंदे भवभीतिभंजनकरीं त्रैलोक्यमातः शिवे ॥ ८ ॥

शाकंभर्यष्टकमिदं यः पठेत्प्रयतः पुमान् ।

स सर्वपापविनिर्मुक्तः सायुज्यं पदमाप्नुयात् ॥ ९ ॥

*॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं शाकम्भर्यष्टकं संपूर्णम् ॥*

*🙏मान्यता है कि इस दिनों गरीबों को अन्न-शाक यानी कच्ची सब्जी, भाजी, फल व जल का दान करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है एवं मां उन पर प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करती हैं। शाकंभरी नवरात्रि का आरंभ पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होता है, जो पौष पूर्णिमा पर समाप्त होता है।*🚩🔥🌹
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