सप्तम भाव

सप्तम (जीवनसाथी भाव) मे शुक्र ग्रह  का  फल  

सप्तम (जीवनसाथी भाव)👉 यह भाव शुक्र का कारक भाव है परन्तु मेरे शोध
के अनुसार इस भाव में शुक्र शुभ फल अधिक नही देता है। ऐसा जातक जीवनसाथी से सुख प्राप्त करने के साथ धनवान, उदार प्रवृत्ति का, समाज में लोकप्रिय (मेरे अनुभव में जातक का नाम तो अवश्य होता है । गीत-संगीत व साहित्य में रुचि, विवाह के बाद भाग्योदय, किसी चिन्ता से ग्रसित रहने वाला तथा व्याभिचारी भी होता है। 
ऐसा जातक सौंदर्य प्रेमी के साथ अपने जीवन का रहन-सहन उच्च स्तर का रखता है। जातक विवाह के बाद भी अन्यत्र सम्बन्ध रखता है। ऐसे जातक के विपरीतलिंगी मित्र बहुत होते है। इसका कारण यह हो सकता है कि जातक
सार्वजनिक संस्थाओं में अधिक सक्रिय रहता है। वह स्वयं भोगविलास में रत रहने
वाला होता है। ऐसे शुक्र पर यदि शनि अथवा राहू की दृष्टि हो अथवा वृश्चिक राशि
में हो तो जीवनसाथी के जीवन का भय रहता है। यदि मंगल देखे तो उसके कई अवैध सम्बन्ध होते हैं। यदि गुरु अथवा लग्नेश की दृष्टि हो तो अशुभ फल में कमी आती है। मेरे शोध में शुक्र यहां पर बली होता है क्योंकि यह भाव शुक्र का ही कारक भाव है परन्तु फल इस पर दृष्टि अथवा युति के आधार पर मिलते हैं। यहां का शुक्र जातक को कामी तथा भोग-विलास में लीन रहने वाला बनाता है । इस भाव में शुक्र यदि जल तत्व (कर्क, वृश्चिक व मीन) राशि में हो तो जीवनसाथी शारीरिक रूप से तो सुन्दर मिलता है परन्तु स्वभाव से बहुत ही बद्दिमाग, सब पर अपना अधिकार जमाने तथा सबको अपने अधीन करने में विश्वास करने वाला होता है।
शुक्र यदि उच्च का अर्थात मीन अथवा सिंह राशि में हो तो जातक का विवाह के बाद भाग्योदय होता है।  शुक्र यदि शनि अथवा मंगल की राशि में हो तो जातक का विवाह अपने से अधिक आय वाले तथा जाति व समाज के बाहर होता है। शुक्र यदि मेष, मिथुन, तुला अथवा धनु राशि में हो तो जातक कला, संगीत, लेखन अथवा शिक्षा के क्षेत्र में अधिक रुचि रखता है। वह धनोपार्जन भी इन क्षेत्रों करता है। अन्य राशियों जातक व्यवसाय में सफल हो सकता है। शुक्र यदि यहां पृथ्वी तत्व (वृषभ, कन्या व मकर) राशि में हो तो
जीवनसाथी मोटा शरीर, छोटा कद तथा परिवार को एक साथ लेकर चलने वाला
होता है। उसका व्यवहार सबके साथ एक समान होता है। यदि यह योग पुरुष की
पत्रिका में बने तो उसकी पत्नी पूरे परिवार की सेवा करने वाली होती है । मैंने इस
शुक्र पर शोध में देखा है कि जातक अधिक कामी होता है तथा काम वासना जाग्रत होने पर वह कुछ भी कर सकता है। शनि अथवा राहू के प्रभाव में शुक्र हो तो जातक
काम-वासना के अतिरेक में आयु के बन्धन भी तोड़ देता है। मंगल के प्रभाव में होने
पर तो जातक हिंसा से भी नहीं चूकता है ।  मंगल तो-हिंसा करवाता ही है और यदि किसी शुभ ग्रह का भी प्रभाव हो तो जातक की काम-वासना प्रबल रहती है। वह किसी हद तक सीमा
में रहकर ही कुछ करता है, परन्तु वह कामी तो होता ही है 

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आचार्य श्वेता ओबेरॉय
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