वक्री ग्रह

#वक्री #ग्रह (वैदिक ज्योतिष)

वक्री ग्रह का क्या महत्व है। जब आप की कूण्डली में किसी भी भाव का स्वामी ग्रह अगर वक्री अवस्था मे स्थत्ति है । तो आप को उस भाव के फलौ  के लिए बहुत ज्यादा महेनत य्या माने ले बहुत ज्यादा एक्स्ट्रा एफर्ट लगाना पड़ सकता तभी उस भाव के फल  आप को अपने जीवन मे मिलेंगे ।

वक्री ग्रह का मतलब होता है ग्रह अपने स्वभाविक तरीके से कार्य नही करता है। य्या अपने नेचुरल तरीके से हटकर कार्य करता है। 
उदारण के तौर पर हम किसी वाहन को चढ़ाई पर चढ़ा रहे और वो चढ़ते जा रहा है फिंर चढ़ते चढ़ते व रिवर्स हो रहा है तो उस टाइम ड्राइवर  को अधिक एफर्ट लगाना पड़ता है। ताकि की वो वाहन को कंट्रोल कर सके आगे बढा सके।
उदारहण के तोर पर मान लीजिए कि किसी के प्रथम भाव यानी 1st हाउस का लार्ड वक्री है कूण्डली में कही भी तो आप का जो नाम है आप की जो पहंचान है आप की जो सामाजिक वैल्यू है ।  आप को अपनी पेर्शनल्टी  के लिए इन सब चीजों को बनाने के लिए आप को एक्स्ट्रा एफर्ट की जरुरत पड़ेगी बहुत महेनत करनी पड़ेगी तब जाके आप इन सब चीजों को पाने में सफलता हासिल करंगे 
जैसे मान लेते किसी की  धनु लग्न की कूण्डली है और 2nd हाउस का स्वामी शनि कूण्डली में वक्री अवस्था मे है तो क्या होगा।
2nd हाउस का ग्रह स्वामी अगर वक्री होता है तो  अपनी  फैमली वैल्यू को बनाने में अपनी बचत को मैनेज करने में अपनी वेल्थ को बनाने में आप को बहुत ज्यादा एफर्ट करना पड़ेगा । 2nd का सम्बध  वाणी से  है तो कई बार जातक बोलने में भी दिकत हो सकती है। सब्दो का चुनाव जातक ठीक से नही कर पाता।
आचार्य वेंकटेश कि सर्वार्थ चिंतामणि में वक्री ग्रह कि दशा, अंतर्दशा के फल का सुंदर विवरण मिलता है।

1. वक्री मंगल:- मंगल ग्रह यदि वक्री है, तथा उसकी दशा अथवा अंतर्दशा चल रही हो तो व्यक्ति अग्नि, शत्रु आदि के भय से त्रस्त रहेगा, वह ऐसे में एकांतवास अधिक चाहेगा।

2. वक्री बुध:- वक्री बुध अपनी दशा अंतर्दशा में शुभ फल देता है, वह पत्नी, परिवार आदि का सुख भोगता है, धार्मिक कार्यों में उसकी रूचि जागृत होती है।

3. वक्री गुरु:- वक्री गुरु पारिवारिक सुख, समृद्धि देता है, तथा शत्रु पक्ष पर विजय करवाता है, व्यक्ति ऐश्वर्यमय जीवन जीता है।

4. वक्री शुक्र :- वक्री शुक्र मान-सम्मान का द्योतक है, वाहन सुख तथा सुख-सुविधा के अनेक साधन वह जुटा पता है।

5. वक्री शनि:- वक्री शनि अपनी दशा अंतर्दशा में अपव्यय करवाता है, व्यक्ति के प्रयासों में सफलता नहीं मिलने देता, ऐसा शनि मानसिक तनाव, दुःख आदि देता है।

 डा आर बी  धवन जी भी आचार्य वेंकटेश कि सर्वार्थ चिंतामणि में वक्री ग्रह कि दशा, अंतर्दशा के फल का पूर्ण रूप से समर्थन करते है।

उपलब्ध  ग्रंथो के अध्ययन-मनन के पश्चात यह निष्कर्ष निकलता है कि, यदि कोई ग्रह वक्री है और साथ ही साथ बलहीन भी है तो, फलादेश में वह बलवान सिद्ध होगा। इसी प्रकार बलवान ग्रह यदि वक्री है तो, अपनी दशा अंतर्दशा में निर्बल सिद्ध होगा। इस के अतिरिक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि शुभाशुभ का फलादेश अन्य कारकों पर भी निर्भर करेगा।
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