दत्तात्रेय द्वारा गुरु महिमा !

श्रीमद भागवद महापुराण में 
दत्तात्रेय द्वारा गुरु महिमा !

आप सभी का दिवस बरस
मङ्गलमय हो💐
समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हों💐

शास्त्रों के अनुसार ईश्वर का ज्ञान
स्वरूप व शक्ति गुरु के रूप में
पूजनीय है। 

गुरु से मिला ज्ञान,शिक्षा,सत्य,
प्रेरणा व शक्ति ही पूर्ण व कुशल
बनाती है। 

इसलिए गुरु सेवा,भक्ति या स्मरण
मात्र से उत्पन्न बुद्धि और विवेक
जीवन की सम्पूर्ण कठिनाईयों से
उबारने वाला भी होता है।

हिन्दू धर्म परंपराओं में गुरु व परब्रह्म
के विलक्षण स्वरूप में त्याग,तप,ज्ञान
व प्रेम की साक्षात् मूर्ति भगवान दत्तात्रेय
को माना जाता है। 

विशेषतया भगवान दत्तात्रेय का
24 गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करने
का पौराणिक प्रसंग जीवन में गुरु
की महत्ता को रोचक तरीके से
उजागर करता है। 

क्योंकि ये 24 गुरुओं मात्र इंसान ही
नहीं बल्कि पशु, पक्षी व कीट-पतंगे
भी शामिल हैं।

1. पृथ्वी- सहनशीलता व परोपकार
की भावना।

2. कबूतर – 
कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने
बच्चों को देखकर मोहवश खुद भी
जाल में जा फंसता है। 

शिक्षा लिया कि किसी से भी ज्यादा
स्नेह दुःख की वजह होता है।

3. समुद्र- 
जीवन के उतार-चढ़ाव में सदा प्रसन्न
एवं गम्भीर रहें।

4. पतंगा- 
जिस तरह पतंगा आग की तरफ
आकर्षित हो जल जाता है। 
उसी तरह रूप-रंग के आकर्षण
व मोह में न उलझें।

5. हाथी - 
आसक्ति से बचना।

6. छत्ते से शहद निकालने वाला – 
कुछ भी एकत्र करके या स्नचित
करके न रखें,ऐसा करना हानि का
कारण बन सकता है।

7. हिरण - 
उछल-कूद,संगीत,मौज-मस्ती
में न खोएं।

8. मछली - 
स्वाद के वशीभूत न रहें यानी
इंद्रिय संयम।

9. पिंगला वेश्या - 
पिंगला नाम की वैश्या से सबक
लिया कि केवल पैसों की आस
में न जीएं। 
क्योंकि पैसा पाने के लिए वह
पुरुष की राह में दुखी हुई व उसे
त्यागने पर ही चैन से नींद ली।

10. कुरर पक्षी - 
वस्तुओं को पास में रखने की
सोच छोड़ना। 
यानी अकिंचन होना।

11. बालक - 
चिंतामुक्त व प्रसन्न रहना।

12. कुमारी कन्या – 
अकेला रह काम करना या आगे
बढ़ना। 
धान कूटते हुए कन्या की चूड़ियां
आवाज कर रही थी। 
बाहर मेहमान बैठे होने से उसने
चूड़ियां तोड़ दोनों हाथों में बस
एक-एक चूड़ी रखी और बिना
शोर के धान कूट लिया।

13. शरकृत या तीर बनाने वाला - 
अभ्यास और वैराग्य से मन को
वश में करना।

14. सांप – 
एकाकी जीवन,एक ही
जगह न बसें।

15. मकड़ी – 
भगवान भी माया जाल रचते हैं
और उसे मिटा देते हैं।

16. भृंगी कीड़ा –
अच्छी हो या बुरी,जहां जैसी
सोच में मन लगाएंगे मन वैसा
ही हो जाता है।

17. सूर्य – 
जिस तरह एक ही होने पर भी
अलग-अलग माध्यमों में सूरज
अलग-अलग दिखाई देता है। 
आत्मा भी एक है पर कई
रूपों में दिखाई देती है।

18. वायु – अच्छी बुरी जगह
पर जाने के बाद वायु का मूल
रूप स्वच्छता ही है। 
उसी तरह अच्छे-बुरों के साथ
करने पर भी अपनी अच्छाइयों
को कायम रखें।

19. आकाश – 
हर देश काल स्थिति में
लगाव से दूर रहे।

20. जल – 
पवित्र रहना।

21. अग्नि – 
हर टेढ़ी-मेढ़े हालातों में
ढल जाएं। 
जैसे अलग-अलग तरह की
लकड़ियों के बीच आग एक
जैसी लगती नजर आती है।

22. चन्द्रमा – 
आत्मा लाभ-हानि से परे है। 
वैसे ही जैसे कला के घटने
-बढ़ने से चंद्रमा की चमक
व शीतलता वही रहती है।

23. भौंरा या मधुमक्खी - 
भौरें से सीखा कि जहां भी
सार्थक बात सीखने को
मिले उसे न छोड़ें।

24. अजगर – 
संतोष,जो मिल जाए उसे
स्वीकार कर लेना।

★भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा,विष्णु
एवं महेश का संयुक्त विग्रह हैं।★

इनकी आराधना त्रिदेव की
आराधना मानी जाती है।
भगवान दत्तात्रेय ही "परम गुरु" हैं।

★श्री दत्तात्रेयस्तोत्रम्★
💐💐💐💐💐💐💐

जटाधरं पाण्डुरंगं
शूलहस्तं दयानिधिम्।
सर्वरोगहरं देवं
दत्तात्रेयमहं भजे॥१॥

जगदुत्पत्तिकर्त्रे च
स्थितिसंहारहेतवे।
भवपाशविमुक्ताय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥२॥

जराजन्मविनाशाय
देहशुद्धिकराय च।
दिगंबर दयामूर्ते
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥३॥

कर्पूरकान्तिदेहाय
ब्रह्ममूर्तिधराय च।
वेदशास्स्त्रपरिज्ञाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥४॥

ह्रस्वदीर्घकृशस्थूल
नामगोत्रविवर्जित!
पञ्चभूतैकदीप्ताय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥५॥

यज्ञभोक्त्रे च यज्ञेय
यज्ञरूपधराय च।
यज्ञप्रियाय सिद्धाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥६॥

आदौ ब्रह्मा मध्ये
विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः।
मूर्तित्रयस्वरूपाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥७॥

भोगालयाय भोगाय
योगयोग्याय धारिणे।
जितेन्द्रिय जितज्ञाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥८॥

दिगंबराय दिव्याय
दिव्यरूपधराय च।
सदोदितपरब्रह्म
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥९॥

जंबूद्वीप महाक्षेत्र
मातापुरनिवासिने।
भजमान सतां देव
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१०॥

भिक्षाटनं गृहे ग्रामे
पात्रं हेममयं करे।
नानास्वादमयी भिक्षा
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥११॥

ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा
वस्त्रे चाकाशभूतले।
प्रज्ञानघनबोधाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१२॥

अवधूत सदानन्द
परब्रह्मस्वरूपिणे ।
विदेह देहरूपाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१३॥

सत्यरूप ! सदाचार !
सत्यधर्मपरायण!
सत्याश्रय परोक्षाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१४॥

शूलहस्त ! गदापाणे !
वनमाला सुकन्धर !।
यज्ञसूत्रधर ब्रह्मन्
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१५॥

क्षराक्षरस्वरूपाय
परात्परतराय च।
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र !
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१६॥

दत्तविद्याड्यलक्ष्मीश
दत्तस्वात्मस्वरूपिणे।
गुणनिर्गुणरूपाय
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१७॥

शत्रुनाशकरं स्तोत्रं
ज्ञानविज्ञानदायकम्।
आश्च सर्वपापं शमं याति
दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१८॥

इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं
दत्तप्रत्यक्षकारकम्।
दत्तात्रेयप्रसादाच्च
नारदेन प्रकीर्तितम्॥१९॥

इति श्रीनारदपुराणे
नारदविरचितं
श्रीदत्तात्रेय स्तोत्रं
संपुर्णमं।।

समस्त चराचर प्राणियों एवं सकल
विश्व का कल्याण करो प्रभु !!!!

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