भैरव बाबा और उनकी पूजा विधि
किसी भी महा विद्या की पूजा साधना से पहले भेरव बाबा की आज्ञा लेनी जरूरी है उनकी आज्ञा के बिना पूजा और साधना अधूरी मानी जाती है।
जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है।
भगवान काल भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है काल भैरव से संबंधित 10 विशेष बातें...
चमत्कारी भैरव मंत्र-
'ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं'।
* भैरव को शिव जी का अंश अवतार माना गया है। रूद्राष्टाध्याय तथा भैरव तंत्र से इस तथ्य की पुष्टि होती है।
* भैरव जी का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं।
* उनका वाहन श्वान यानी कुत्ता है।
* भैरव श्मशानवासी हैं तथा ये भूत-प्रेत, योगिनियों के स्वामी हैं।
* भक्तों पर कृपावान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं।
* रविवार एवं बुधवार को भैरव की उपासना का दिन माना गया है।
* भैरव जयंती, भैरव अष्टमी के दिन कुत्ते को मिष्ठान में अमरती या जलेबी का भोग लगता है कुतो को दूध पिलाना चाहिए।
* भैरव की पूजा में श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शत-नामावली का पाठ करना चाहिए।
* भैरव की प्रसन्नता के लिए श्री बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है।
* श्री काल भैरव अपने उपासक की दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं।
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