आज का विषय अविवाहित या ब्रह्मचारी योग या फिर प्रव्रज्या योग भी कह सकते है
1 यदि 4 या अद्दिक ग्रहः बलि अवस्था मे किसी एक भाव मे साथ हो जो जातक साधना और दर्शन की तरफ सदैव आकर्षित रहता है।
2 शनि को न्याय का देवता कहते है यह असल वास्तविकता के दर्शन कराने में माहिर माने जाते है। यदि शनि बलि हो और किसी ग्रहः की दृष्टि न हो तब भी जातक ब्रह्मचारी बनने का विचार रखता है।
3 पंचम भाव जो इष्ट देव का है और नवम जो धर्म पूजा का है अगर इनका सम्बन्ध अच्छे ग्रहो से हो और दशम भी इन्वॉल्व हो जाये तो जातक साधक, ब्रह्म चारी बन सकता है।
4 चन्द्रमा मन है और शनि विरकक्ति यदि मन परेशान न हो इच्छाए ज्यादा हो तो साधक बनने में मुश्किल है, चन्द्र शनि का साथ होना या कोई सम्बद्ध होना भी आवश्यक है।
5 अष्टम भाव, तृतीय, दशम का बलि होना भी देखना जरूर है क्योकी पराक्रम भाव हिम्मत नही देगा तो घर नही छूटेगा, दशम बलि नही होगा तो अपने कर्म एवम लक्ष्य को साधेगा कैसे और अष्टम बलि नही हुआ तो इच्छा कैसे जागेगी जीवन को भक्ति साधना के साथ लंबे समय तक जीने की।
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