किसी भी कुंडली में लगन से केन्द्र भाव विष्णु स्थान कहलाते है एवं लग्र से त्रिकोण स्थान लक्ष्मी स्थान कहलाते है । जब भी इन विष्णु एवं लक्ष्मी स्थानों का संबंध अर्थात परस्पर इन भावों के स्वामी आपस में संबंध बनाते है तो राजयोग का निर्माण होता है।
विष्णु स्थान १,४,७ और १० भाव
लक्ष्मी स्थान १,५,९ भाव
अत: बनने वाले राजयोग १+५, १+९, ४+५, ४+९, ७+५, ७+९, १०+५ और १०+९ भाव
उपरोक्त भावों में युति, परस्पर दृष्टि और परिवर्तन सम्बन्ध बनने पर राजयोग बनता है।
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