समुद्र मंथन और आत्ममंथन हमारे आज के जीवन में क्या महत्व रखते है? अमृत क्या है? मोक्ष क्या है ? आइये समझे !

समुद्र मंथन और आत्ममंथन हमारे आज के जीवन  में क्या महत्व रखते है? अमृत क्या है? मोक्ष क्या है ? आइये समझे !

  हलाहल (विष) - समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले मंदराचल व कच्छप की पीठ की रगड़ से समुद्र में आग लगी और भयानक कालकूट जहर निकला। सभी देव-दानव और जगत में अफरा-तफरी मच गई। कालों के काल शिव ने इस विष को गले में उतारा और नीलकंठ बने। असल में, इसमें भी छुपा संकेत है। शिव के सिर पर गंगा ज्ञान का ही प्रतीक है यानि जो ज्ञानी होता है, उसमें जीवन के सारे क्लेशों का सामना करने व बाहर निकलने की शक्ति होती है। यही नही, इसमें दूसरों के सुख के लिए जीने की भी प्रेरणा हैं। साथ ही साथ जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव योग के प्रतीक हैं। शिव के साथ योग, तपस्या, ध्यान संयम जुड़ा है।योग का मतलब अनुशासन संतुलन आत्मज्ञान, आत्मजाग्रति।आज की जिंदगी में हम छोटी छोटी बातों पर संतुलन खो देते हैं तब हमें अपना जीवन शिव की भांति गंभीर और संयमित करने की जरूरत है।यदि ऐसा हो सका तो हमें पूर्णतः आत्मसुख की प्राप्ति होती है।  

कामधेनु - कामधेनु की सबसे बड़ी खासियत उपयोगी यज्ञ सामग्री देना थी। ब्रह्मलोक तक पहुंचाने वाली जरूरी चीजें जैसे दूध, घी पाने के लिए ऋषियों को दान की गई। ऋषियों को दान के पीछे यही सीख है कि मेहनत से कमाई धन-दौलत का पहले भलाई में उपयोग करें और संतोष रखें। कामधेनु संतोष का प्रतीक है।जो सभी को निस्वार्थ भाव से देना सिखाती है।माता पिता और दीन हीन लोगों की सेवा करने भर से हमें भी कामधेनु की भांति जीवन का अनुसरण करना चाहिए।  

उच्चै:श्रवा घोड़ा - समुद्र मंथन से अश्वजाति में श्रेष्ठ, चन्द्रमा की तरह सफेद व चमकीला, मजबूत कद-काठी का दिव्य घोड़ा उच्चै:श्रवा प्रकट हुआ, जो दैत्यों के हिस्से में गया और इसे दैत्यराज बलि ने ले लिया।  उच्चै:श्रवा में श्रवा का मतलब ख्याति या कीर्ति भी है। यानि जो मन का स्थिर रख काम करे वह मान व पैसा भी कमाता है। किंतु जो केवल कीर्ति के पीछे भागे उसे फल यानि अमृत नही मिलता। दैत्यों के साथ भी ऐसा ही हुआ। हमें सदैव अपने जीवन को अश्व की तरह निस्वार्थ भाव से निरंतर गतिशील बनाये रखने की आवश्यकता है। 

 ऐरावत हाथी - चार दांतों वाला अदभुत हाथी, जिसके दिव्य रूप व डील-डौल के आगे कैलाश पर्वत की महिमा भी कुछ भी नही। स्कन्दपुराण के मुताबिक ऐरावत के सिर से मद बह रहा था और उसके साथ 64 और सफेद हाथी भी मंथन से निकले। ऐरावत को देवराज ने प्राप्त किया।  असल में हाथी की आंखे छोटी होती है। इसलिए ऐरावत, पैनी नजर या गहरी सोच का प्रतीक है। संकेत है कि शरीर सुख ही नही आत्मा की ओर भी ध्यान दें।  


कौस्तुभ मणि - सभी रत्नों के सबसे श्रेष्ठ व अदभुत रत्न। इसकी चमक सूर्य के समान होकर त्रिलोक को प्रकाशित करने वाली थी। देवताओं को मिला यह रत्न भगवान विष्णु के स्वरूप अजीत ने अपनी हृदयस्थल पर धारण करने के लिए प्राप्त किया।ऐसे रत्न का कोई मोल नही एवं हमारे मान सम्मान का प्रतीक जैसे कि हमारी संतान जिसको दिये संस्कार ही समाज हित में हमारे मान सम्मान का केन्द्र बिन्दु है।  

कल्पवृक्ष - स्वर्गलोक की शोभा माने जाने वाला कल्पवृक्ष। इसकी खासियत यह थी कि मांगने वालें को उसकी इच्छा के मुताबिक चीजें देकर हर इच्छा पूरी करता है।जिसके अंदर किसी भी प्रकार का ऊच नीच का भाव नही जातिपात से दूर रहकर जीवन को सभी के लिए काम मे कैसे लाए इसका बोध कराता है।हमें भी अपने जीवन को पारिजात वृक्ष की तरह औरो को फल एवं छाया देने वाला बनाना चाहिए।  
अप्सराएं - सुन्दर वस्त्रों से सजी और गले में सोने के हार पहनें, मादक चाल-ढाल व मुद्राओ वाली अप्सराओं को, जिनमें रंभा प्रमुख थी जिसको देवताओं ने अपनाया।हमें भी अपने जीवन में इन देवताओं से सीख मिलती है कि नारी कितनी भी रूपवान क्यों ना हो? उसका सम्मान करना चाहिये।क्योंकि जिस घर में नारी का सम्मान होता है वहां लक्ष्मी जी का बास होता है।  

महालक्ष्मी - समुद्र मंथन से निकली साक्षात मातृशक्ति व महामाया महालक्ष्मी के तेज व सौंदर्य, रंग-रूप ने सभी को आकर्षित किया। लक्ष्मीजी को मनाने के लिए सभी जतन करने लगे। किसे अपनाएं यह सोच लक्ष्मीजी ऋषियों के पास गई, किंतु ज्ञानी, तपस्वी होने पर क्रोधी होने से उन्हें नहीं चुना।  इसी तरह देवताओं को महान होने पर भी कामी, मार्कण्डेयजी को चिरायु होने पर भी तप में लीन रहने, परशुराम जी को जितेन्द्रिय होने पर भी कठोर होने की वजह से नही चुना।  आखिर में लक्ष्मीजी ने शांत, सात्विक, सारी शक्तियों के स्वामी और कोमल हृदय होने से भगवान विष्णु को वरमाला पहनाई। संदेश यही है कि जिनका मन साफ और सरल होता है उन पर लक्ष्मी प्रसन्न होती है।   

चन्द्रमा - स्कन्दपुराण के मुताबिक सागर मंथन से संपूर्ण कलाओं के साथ चन्द्रमा भी प्रकट हुए। ग्रह-नक्षत्रों के ज्ञाता गर्ग मुनि ने बताया कि चन्द्र के प्राकट्य से विजय देने वाला गोमन्त मुहूर्त बना है, जिसमें चन्द्र का गुरु से योग के अलावा बुध, सूर्य, शुक्र, शनि व मंगल से भी चन्द्र की युति शुभ है। चन्द्रमा शीतलता का भी प्रतीक होता है।तब हमे अपने जीवन में सदैव शीतलता पूर्वक विचार करके कार्य करना चाहिए।  
वारुणी (मदिरा) - सुन्दर आंखों वाली कन्या के रूप में वारुणी देवी प्रकट हुई, जो दैत्यों ने प्राप्त की।  

पारिजात - इस वृक्ष की खासियत यह बताई गई है कि इसको छूने से ही थकान मिट जाती है। मान्यता है कि स्वर्ग की अप्सराएं व नर्तकियां भी इसे छूकर अपनी थकान मिटाती थी। हनुमानजी का वास भी इस वृक्ष में माना गया है। भगवान कृष्ण भी स्वर्ग जाकर पारिजात वृक्ष लाने का उल्लेख मिलता है।हमें भी जीवन में सदैव बड़ो के प्रति आदर और पारिजात रूपी ईश्वर को अंतःकरण से स्मरण करके छूने की कोशिश करने की आवश्यकता है।  

शंख - समुद्र मंथन में मिलने वाले दिव्य वस्तुओं में शंख भी शामिल था। मंथन से ही उत्पन्न होने से यह लक्ष्मी का भाई भी पुकारा जाता है। इसके कई रूप जैसे दक्षिणावर्ती शंख आदि लक्ष्मी की अपार कृपा देने वाले बताए गए हैं। 

  धनवन्तरि और अमृत - समुद्र मंथन के अगले चरण में आयुर्वेद के प्रवर्तक और भगवान विष्णु के ही अंशावतार माने गए भगवान धनवन्तरि हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। 
यह हमे जीवन के आखिरी पढ़ाव पर  प्राकृतिक और आयुर्वेद से जोडती है इस प्रकार से व्यतीत किया जीवन हमे आखिर में मोक्ष देता है,यही आज के जीवन का अमृत है।


श्वेता ओबेरॉय दीदी
संपर्क सूत्र 8527754150
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